Saturday, 26 March 2016

कोई ख्वाब देखे जमाना गुज़र गया

कोई ख्वाब देखे जमाना गुज़र गया
क्या आया और क्या क्या गुज़र गया

चमन उजड़े दरख़्तें गिरीं नींवें हिलीं
भला हुआ वो एक गुबार गुज़र गया

मुश्किलें कुछ कम थीं तेरे मिलने पे
न सोचा था वो सब भी गुज़र गया

इन्सानियत तो अब है अंधों का हाथी
वो बेचारा कब जमाने से गुज़र गया

एक बेचारा  भटके है न्याय पाने
इस रास्ते पे वो सौ बार गुज़र गया

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