कोई
ख्वाब देखे
जमाना गुज़र
गया
क्या
आया और क्या क्या
गुज़र गया
चमन उजड़े
दरख़्तें
गिरीं
नींवें हिलीं
भला हुआ वो एक
गुबार गुज़र
गया
मुश्किलें
कुछ कम थीं तेरे
मिलने पे
न सोचा
था वो सब
भी गुज़र गया
इन्सानियत तो अब है
अंधों का हाथी
वो बेचारा कब
जमाने से
गुज़र गया
एक
बेचारा भटके है
न्याय पाने
इस
रास्ते पे
वो सौ बार
गुज़र गया
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