Thursday, 24 March 2016

हम रुसवा हुए तेरे नाम से, मुहब्बत में ये सिला तो दिया

हम रुसवा हुए तेरे नाम से, मुहब्बत में ये सिला तो दिया
जुबां पे वफाई बहुत थी तेरी, जुबां से सही, कुछ तो दिया

बहारों के सीने में थी जो जलन, चरागों से रोशन था जो चमन
उजालों से तूने मुंह फेरकर, अंधेरा ही सही, कुछ तो दिया

तेरी उल्फत में हम रोये बहुत, हंसे भी तो आंसू आ ही गए
तूने मेरा दामन छोड़कर, दर्द ही सही, कुछ तो दिया

मेरे मुकद्दर में लिखी न थी तुम, तुमको खतावार किस मुंह से कहूं
मेरे दिल को तूने यूं तोड़कर, तन्हाई ही सही, कुछ तो दिया

जमाने के दिल में जज़्बात नहीं, हम भी सनम कुछ वैसे ही थे
तुमने मुझे जज़्बाती बनाकर, आंसू ही सही, कुछ तो दिया

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