दर्द अपना हो या पराया
सबमें बसा है तेरा साया
खुशियों का घर कहीं न देखा
मंदिर-मस्जिद तक हो आया
जबसे रूह की आहट पाई
दुनिया लगने लगी पराया
अब तक थे हम ठहरे पानी
तुमने हमको दरिया बनाया
सबमें बसा है तेरा साया
खुशियों का घर कहीं न देखा
मंदिर-मस्जिद तक हो आया
जबसे रूह की आहट पाई
दुनिया लगने लगी पराया
अब तक थे हम ठहरे पानी
तुमने हमको दरिया बनाया
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