Thursday, 24 March 2016

कोई मुजरिम भी फरिश्ता इश्क में हो जाएगा

सो गया हर शै दुनिया में, इश्कवाले जागे हैं
आशिकों के दिन बदकिस्मत, रातें भी अभागे हैं

हम जुदाई के सदमे से इस तरह से टूट गए
ठहरे पानी में अब हरसू, दर्द की सैलाबें हैं

कोई मुजरिम भी फरिश्ता इश्क में हो जाएगा
पाक जिनसे होंगी रूहें, ऐसी भी गुनाहें हैं

ये तलबगारों की बस्ती जालिमों की बस्ती है
रंजिशों की इस महफिल में हम तन्हा रह जाते हैं

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