आती हैं
अब बेमौसम
बहारें
अब तो
रखेल हो गई
बहारें
अब तक
पड़ा नहीं
साबिका
कैसे पहचानेंगे
आई बहारें
सियासतों
से लुट गई
क़ौमें
बनानी होगी अब नई
बहारें
जीने के जद्दोजहद
में यारों
कैसा
बसंत कैसी
तो बहारें
इस क़दर
नावाक़िफ़ तू
गुजर
चुकी कई कई
बहारें
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