अबला सबला कहीं निर्मला , गृह लक्ष्मी की मिली उपाधि
नारी फिर भी क्यूँ है दासी
पिया की वह कहीं प्रेयसी , जन जन के हैं रिश्ते भारी
सदा प्रताड़ित होती जग में, तस्वीरों में पुजती नारी
रिश्तों की डोरी में बंधकर, जंजीरें जकड़े हितकारी
डायन कुलटा कोई कहे, कोई कहे नागिन विषधारी
जन्मदात्री वही सभी की, फिर क्यूँ कहलाये है व्याधि
नारी फिर भी क्यूँ है दासी
दीवारों की शोभा खातिर, तस्वीरों में नग्न है नारी
विवश जिन्दगी जर्जर जीवन, वैश्यालयों में मग्न है नारी
कभी यहाँ और अभी वहाँ, सभी जगह लुटती बेचारी
खरीद फरोख्त करते हैं इसकी, जिस्मों के ये कारोबारी
बचपन नहीं सुरक्षित इसका, जुल्म की वो उठ्ठी है आंधी
नारी फिर भी क्यूँ है दासी
नहीं सुरक्षित आज कोख में, हाय अभागी कैसी नारी
रक्षक ही भक्षक बन जाए, कैसे भरे आज किलकारी
कौन उपाय करो जग माहीं, कैसे जाए दशा सुधारी
पश्चिम के ये चमत्कार हैं, जिन पर अब भारत बलिहारी
बिन नारी जग संभव ना है, क्या समझाऊं बात जरा सी
अबला सबला कहीं निर्मला, गृह लक्ष्मी की मिली उपाधि
नारी फिर भी क्यूँ है दासी
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