काश! कि मैं जिंदा रहता मरने के बाद
अपनी मैयत पे जश्न मनाने के लिए
मैंने अपनों को ये वसीयत दे रखी है
कि आप आएं मुझे कांधा देने के लिए
रोने की बात उठी तो सब उठ गए
हम बैठे रहे बज्म-ए-मैयत में रोने के लिए
वो बेवफा भी क्या जाने किसी का दर्दो-गम
जो आती है इश्क में जहर देने के लिए
अपनी मैयत पे जश्न मनाने के लिए
मैंने अपनों को ये वसीयत दे रखी है
कि आप आएं मुझे कांधा देने के लिए
रोने की बात उठी तो सब उठ गए
हम बैठे रहे बज्म-ए-मैयत में रोने के लिए
वो बेवफा भी क्या जाने किसी का दर्दो-गम
जो आती है इश्क में जहर देने के लिए
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