मुद्दतों से वो
आईना दिखाते
रहे
हम खुद
से खुद को छुपाते
रहे
दूसरों
की रोशनियाँ
देख देख
के
आशियाना
अपना ही जलाते
रहे
कहाँ तो
चल दिया सारा
जमाना
हम
खिचड़ी अपनी
बैठे पकाते
रहे
यूँ
दर्द तो है
दिल में बहुत
मगर
दुनिया
को गुदगुदाते
हँसाते रहे
कभी तो उठेगी हूक
दिल में
यही सोच
कर ग़ज़लें
सुनाते रहे
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