Thursday, 17 March 2016

नज्म


मेरे ही गुलशन की मिट्टी मे
कुछ दिमक लग गया
वैसे जैसे पनघट पर प्यासा
बिन पानी के मर गया

जब भी हाथ बढाई है हमने
उनके सहयोग के वास्ते
जैसे चुल्हुँ भर पानी मे मेरे
कोई किड़ा समा गया
खेत उनके हरे भरे बहुत है
सिचाई गैरो के नहर से है
मगर इंसा हू खाद देने चल
दिये देखकर जालिम तब
मुझ पर भड़क गया

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