मेरे ही गुलशन की मिट्टी मे
कुछ दिमक लग गया
वैसे जैसे पनघट पर प्यासा
बिन पानी के मर गया
जब भी हाथ बढाई है हमने
उनके सहयोग के वास्ते
जैसे चुल्हुँ भर पानी मे मेरे
कोई किड़ा समा गया
खेत उनके हरे भरे बहुत है
सिचाई गैरो के नहर से है
मगर इंसा हू खाद देने चल
दिये देखकर जालिम तब
मुझ पर भड़क गया
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