Thursday, 17 March 2016

ग़ज़ल

नही आता ,,,,मज़ा कोई ,,,,,झगड़ने या ,,,,,मनाने में।
मेरा तो दिन ,,,,निकल जाता,,, है दो रोटी कमाने में।
न जाने क्या मिला उनको ,,,,,,भला हमको सताने में।
लगेंगी मुद्दतें ,,,,,,,हमको उन्हें ,,,,,,,दिल से भुलाने में।
मुहब्बत को सही अंजाम दे ,,,,,,पाना बहुत मुश्किल।
बहुत क़ुर्बानियां ,,,,,होती थी ,,,उल्फ़त को निभाने में।
हमारा दर्द,,,,, है यारों ,,,,,,अकेले ही ,,,,,,,हमे सहना ।
नहीं अब ,,,,,,बाँटने वाला ,,,,,,कोई सारे ,,,,,जमाने में।
फ़रेबे- हुस्न का चर्चा ,,,,,कभी फ़ुरसत में सुन लेना।
नही छोड़ी ,,,,,कसर कोई,,,,, मुझे उसने,,,, सताने में।
हमारे दर्द ,,,,,की तासीर ,,,,,,इक दिन रंग,,,,, लाएगी।
बड़ी शिद्दत,,,,,, से ढूढेंगे,,,,,,, हमे सारे,,,,,,,, ज़माने में।
ज़रूरी काम था ,,,,जो आ गया ,,,,,उसमें फंसा था मै।
नहीं करता,,, हूँ मैं हुज़्ज़त ,,,,,यहां महफ़िल मेआने में।
चले आओ,,, मेरे यारों ,,,शिकायत हो तो कह दो तुम।
नहीं रक्खा ,,,,,मज़ा कोई ,,,,यहाँ नफ़रत ,,,,,जताने में।
सियासत हो गई है,,,, मंडियों ,,,,जैसी,,,,,, न जाने क्यों।
सभी दल्ले,,,, जुटे खुद की,,,, दुकानों को,,,, सजाने मे।

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