Thursday, 17 March 2016

रहने आया हुँ मैं बेवफाओं के शहर में

रहने आया हुँ मैं बेवफाओं के शहर में
लूट गया हुँ मैं रहके धड़कन के शहरमें
हँसके उसने क्या देखा समझे मोहब्बत हो गया
फ़ंस गया मैं उसके मुस्कानों के ज़हर में
खूबसूरत चेहरे पे न जाना,न जाया ही करो
तोड़ देती है दिल वो हर एक पहर में
हम उसके इश्क़ का अन्जाम समझ नही पाये
छोड़ के मुझे वो रहती है किस शहर में
अरमान सजाया था दिल में बहुत ही ज्यादा
खुशियाँ बिखर गयी न जाने किसके नज़र में
साहिल पे एक कश्ती उसके नाम रखा था
टुटा क्या दिल मेरा बह गया वो लहर में
भीगे भीगे नयनो से वो बाग़ निहार रहा हुँ
जो टूट के बिखर गया तूफानों के कहर में
इश्क़ का सदमा इस कदर लगा है दिल में
ज़िन्दगी न जाने कब बदल गए बन्जर में

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