Friday, 18 March 2016

अब जाकर ये पता लगा है

अब जाकर ये पता लगा है,
ग़म भी मेरा ही बच्चा है.
दर्द भरी अब ग़ज़ल लिखेगा,
दरिया का दिल टूट गया है.
जंगल में सूरज का चेहरा ,
बहुत दिनों के बाद दिखा है.
मेरी कच्ची नींद में फिर से,
ख्व़ाब का पक्का घर टूटा है.
अपनी तस्वीरों में उसने,
अक्सर मुझको ही ढूँढा है .
मुझे बचाने आया था वो,
साथ में मेरे जो डूबा है.
ना मैं उसको भूल सका हूँ,
ना वो मुझको भूल सका है.

No comments:

Post a Comment