Friday, 18 March 2016

तन्हा पीछे छोड़ गया था

तन्हा पीछे छोड़ गया था जाने वाला यादों को ,
फिर भी कितने लाढ-प्यार से हमने पाला यादों को.
अपने घुटनों पर सर रख कर भूखी-प्यासी बैठी थी,
सूने घर में आखिर देता कौन निवाला यादों को .
नंगे पाँव मिले रस्ते में जब पलकों को गुज़रे दिन,
फूट-फूट कर रोया घंटों पाँव का छाला यादों को.
तन्हाई में अहसासों ने अक्सर ये महसूस किया,
दिल से काश मिल गया होता देश निकाला यादों को.
खेल रहीं थी मुझमें यादें लेकिन तड़प उठी कैसे ,
लगता है कि ख़ामोशी ने विष दे डाला यादों को.
मैं बालिग होती बेटी के पिता सरीखा चिंतित हूँ,
कहाँ मिलेगा मुझसा कोई अब रखवाला यादों को.
मुझे भूलने वाला भी तब लोगों को बेचैन लगा,
उसने जब बीते लम्हों का दिया हवाला यादों को.

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