Wednesday, 16 March 2016

इस कदर भी किसी को सजा ना मिले

इस कदर भी किसी को सजा ना मिले।
प्यार भी जो करे तो वफ़ा ना मिले।
खिड़कियाँ सब खुली हों मकां की मगर ,
सांस भर को ज़रा भी हवा ना मिले।
वो जिए तो जिए इसतरह कब तलक ,
जख़्म गहरे मिलें पर दवा ना मिले।
बदनसीबी नहीं तो कहें क्या इसे ,
जो शहर में उसी का पता ना मिले।
सब उसे ही ख़ताबार साबित करें ,
और उसकी कहीं से खता ना मिले।
वो भटकता रहे बस इधर से उधर ,
पर गली में कोई दर खुला ना मिले।
क्या गुजरती है दिल पर नहीं पूछिए ,
जब मुहब्बत का अपनी सिला ना मिले।

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