इस कदर भी किसी को सजा ना मिले।
प्यार भी जो करे तो वफ़ा ना मिले।
खिड़कियाँ सब खुली हों मकां की मगर ,
सांस भर को ज़रा भी हवा ना मिले।
प्यार भी जो करे तो वफ़ा ना मिले।
खिड़कियाँ सब खुली हों मकां की मगर ,
सांस भर को ज़रा भी हवा ना मिले।
वो जिए तो जिए इसतरह कब तलक ,
जख़्म गहरे मिलें पर दवा ना मिले।
बदनसीबी नहीं तो कहें क्या इसे ,
जो शहर में उसी का पता ना मिले।
सब उसे ही ख़ताबार साबित करें ,
और उसकी कहीं से खता ना मिले।
वो भटकता रहे बस इधर से उधर ,
पर गली में कोई दर खुला ना मिले।
क्या गुजरती है दिल पर नहीं पूछिए ,
जब मुहब्बत का अपनी सिला ना मिले।
जख़्म गहरे मिलें पर दवा ना मिले।
बदनसीबी नहीं तो कहें क्या इसे ,
जो शहर में उसी का पता ना मिले।
सब उसे ही ख़ताबार साबित करें ,
और उसकी कहीं से खता ना मिले।
वो भटकता रहे बस इधर से उधर ,
पर गली में कोई दर खुला ना मिले।
क्या गुजरती है दिल पर नहीं पूछिए ,
जब मुहब्बत का अपनी सिला ना मिले।
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