Sunday, 27 March 2016

देश और समाज को देखूं क्या मज़ाक है

देश और समाज को देखूं क्या मज़ाक है
दो वक्त़ की रोटी नहीं ये कोई मज़ाक है

हौसले ले के तो पैदा हुआ था बहुत मगर
खड़े होने को जगह नहीं कैसा मज़ाक है

तमन्ना तो रही थी तुलसी कब़ीर बनने की
दाऊद, राजन जमाने का भीषण मज़ाक है

शाम से भूखे और सुबह आपका ये दावा
लाओगे कुल्हड़ में तूफ़ान बढ़िया मज़ाक है

असम, बिहार में बाढ़ और दिल्ली में गरमी
कभी तो बदले सिलसिला अच्छा मज़ाक है

देखे है  अपने भविष्य के सुनहरे सपने
लगता है किया किसी ने तुच्छ मज़ाक है

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