गुजरे ऐसे कि हादिसे
आदत बन गए
मदरसे
हर प्रयोग के
शहादत बन गए
ग़ली के गंवारों
को न जाने
क्या हुआ
सड़क
में आकर बड़े
नफ़ासत बन गए
रक़ीबों
की अब किसको
ज़रूरत होगी
अपने
विचार ही जो खिलाफ़त
बन गए
इश्क
इबादतों का
कोई दौर रहा
होगा
धन दौलतें
अब असली चाहत
बन गए
प्रेम
का भूख़ा दर-दर भटका
फिरा
क्या
इल्म था
इंसानियत आहत
बन गए
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