Sunday, 27 March 2016

ज़ुर्म तेरी सज़ा मेरी क्या यह न्याय है

ज़ुर्म तेरी सज़ा मेरी क्या यह न्याय है
दशकों बाद मिले तो क्या यह न्याय है

तहरीर आपकी और फ़ैसला भी आपका
सुना तो रहे हो पर क्या यह न्याय है

तूने अपने लिए गढ़ ली राह गुलों की
काँटों पर हम चलें क्या यह न्याय है

सुनी थीं उनकी तमाम तहरीरें दलीलें
फ़ैसले पे सब हँसे क्या यह न्याय है

मत डूबो  अपनी जीत के जश्न में
सब कहते फ़िर रहे क्या यह न्याय है

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