ज़ुर्म तेरी सज़ा
मेरी क्या यह
न्याय है
दशकों
बाद मिले तो
क्या यह न्याय
है
तहरीर
आपकी और
फ़ैसला भी
आपका
सुना तो
रहे हो पर
क्या यह न्याय
है
तूने अपने लिए गढ़
ली राह गुलों
की
काँटों
पर हम चलें
क्या यह न्याय
है
सुनी
थीं उनकी तमाम
तहरीरें
दलीलें
फ़ैसले पे सब हँसे
क्या यह न्याय
है
मत डूबो
अपनी जीत
के जश्न में
सब कहते फ़िर रहे
क्या यह न्याय
है
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