कभी रोए तेरे खातिर, चुप हुए तेरे खातिर
कभी जलते तो कभी बुझते रहे तेरे खातिर
खर्च होने न दिया हंसी को अपने होठों से
अपनी खामोशी में सहेजते रहे तेरे खातिर
मेरी मंजिल वहीं है जहां पर तुम ठहरी हो
हर कदम पे हम मुंतजिर रहे तेरे खातिर
हो गया हूं मैं अजनबी सा खुद अपने लिए
खो गया हूं न जाने कहां पर तेरे खातिर
कभी जलते तो कभी बुझते रहे तेरे खातिर
खर्च होने न दिया हंसी को अपने होठों से
अपनी खामोशी में सहेजते रहे तेरे खातिर
मेरी मंजिल वहीं है जहां पर तुम ठहरी हो
हर कदम पे हम मुंतजिर रहे तेरे खातिर
हो गया हूं मैं अजनबी सा खुद अपने लिए
खो गया हूं न जाने कहां पर तेरे खातिर
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