रास्ता चुनने में शायद हो गयी है भूल अब्बा ,
हर क़दम पे चुभ रहे हैं बेबसी के शूल अब्बा .
पढ़ रहे हैं वे सड़क-फुटपाथ पे सारे सबक,
इसलिए जाते नहीं पोते तेरे स्कूल अब्बा.
अपने घर की हद में रह कर ,घूम लो थोडा बहुत ,
शहर की आबो-हवा तो है नहीं अनुकूल अब्बा.
जिसमे नहलाते कभी थे मुझको कन्धों पे चढ़ा ,
उस नदी में आजकल उड़ने लगी है धूल अब्बा.
तुमको अपनी ही पड़ी है उनके अपने ख्व़ाब हैं,
वो जिन्हें ताबीर करने में बड़े मशगूल अब्बा.
ख़ून से सींचो न तुम उम्मीद का पौधा कोई,
अब नहीं खिलते यहाँ इंसानियत के फूल अब्बा .
हर क़दम पे चुभ रहे हैं बेबसी के शूल अब्बा .
पढ़ रहे हैं वे सड़क-फुटपाथ पे सारे सबक,
इसलिए जाते नहीं पोते तेरे स्कूल अब्बा.
अपने घर की हद में रह कर ,घूम लो थोडा बहुत ,
शहर की आबो-हवा तो है नहीं अनुकूल अब्बा.
जिसमे नहलाते कभी थे मुझको कन्धों पे चढ़ा ,
उस नदी में आजकल उड़ने लगी है धूल अब्बा.
तुमको अपनी ही पड़ी है उनके अपने ख्व़ाब हैं,
वो जिन्हें ताबीर करने में बड़े मशगूल अब्बा.
ख़ून से सींचो न तुम उम्मीद का पौधा कोई,
अब नहीं खिलते यहाँ इंसानियत के फूल अब्बा .
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