Friday, 18 March 2016

तेरी पहचान का हर पता मैं ही हूँ

तेरी पहचान का हर पता मैं ही हूँ,
रूह से पूछ ले बावफ़ा मैं ही हूँ.
रिश्ते जितने पुराने थे सब जा चुके,
तेरी यादों के घर में बचा मैं ही हूँ.
ये लकीरें हथेली की कुछ भी कहें,
तुम जो दिल से पढो तो लिखा मैं ही हूँ.
जानता हूँ जुबां तक नहीं आएगी,
दिल से निकली मगर हर दुआ मैं ही हूँ.
मेरी ख़ामोशियों की जुबां तू ही है,
तेरी तन्हाई में बोलता मैं ही हूँ.
है समंदर तू चाहे सभी के लिए,
तेरी गहराई में डूबता मैं ही हूँ.
मेरी फितरत में है जीतना ही मगर,
जीत कर भी तुझे हारता मैं ही हूँ.

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