झूठ को झूठ बताते हुए डर लगता है
आइना सच का दिखाते हुए डर लगता है!!
मेरे आदाब को समझे न कोई शान अपनी
इसलिए सर को झुकाते हुए डर लगता है!!
जिस्म को रूह कहीं छोड़ न जाए तनहा
तेरी यादों को भुलाते हुए डर लगता है!!
आँसुओं पे लिखी तहरीर न पढ़ ले कोई
अश्क़ आँखों में छुपाते हुए डर लगता है!!
क्या पता वो कोई कानून का रखवाला हो
चोर को चोर बताते हुए डर लगता है!!
लग न जाए मेरे आने की भनक दुनिया को
तुमको आवाज़ लगाते हुए डर लगता है!!
दर्द की लहर कहीं दौड़ न जाए दिल में
आप से आँख मिलाते हुए डर लगता है!!
घर की दहलीज़ पे फिर पाँव पड़ें या न पड़ें
अब सफ़र में हमें जाते हुए डर लगता है!!
मेरे जज़्बात से खिलवाड़ न कर बैठे कोई
दिल में अहसास जगाते हुए डर लगता है!!
क्या पता कल कोई अपना ही मुख़ालिफ़ निकले
ऊँगली गैरों पे उठाते हुए डर लगता है!!
आइना सच का दिखाते हुए डर लगता है!!
मेरे आदाब को समझे न कोई शान अपनी
इसलिए सर को झुकाते हुए डर लगता है!!
जिस्म को रूह कहीं छोड़ न जाए तनहा
तेरी यादों को भुलाते हुए डर लगता है!!
आँसुओं पे लिखी तहरीर न पढ़ ले कोई
अश्क़ आँखों में छुपाते हुए डर लगता है!!
क्या पता वो कोई कानून का रखवाला हो
चोर को चोर बताते हुए डर लगता है!!
लग न जाए मेरे आने की भनक दुनिया को
तुमको आवाज़ लगाते हुए डर लगता है!!
दर्द की लहर कहीं दौड़ न जाए दिल में
आप से आँख मिलाते हुए डर लगता है!!
घर की दहलीज़ पे फिर पाँव पड़ें या न पड़ें
अब सफ़र में हमें जाते हुए डर लगता है!!
मेरे जज़्बात से खिलवाड़ न कर बैठे कोई
दिल में अहसास जगाते हुए डर लगता है!!
क्या पता कल कोई अपना ही मुख़ालिफ़ निकले
ऊँगली गैरों पे उठाते हुए डर लगता है!!
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