संध्या के अख़बारों जैसी ,
मेरी ग़ज़ल लुहारों जैसी .
तेरे घर पलती है ख़ुशबू,
तेरी बात बहारों जैसी.
मेरा ज़िक्र मरीजों जैसा,
तेरी बात अनारों जैसी.
तेरी बातें तो लगती हैं ,
आसमान के तारों जैसी.
तू हर ग़ज़ल के मतले जैसा,
मेरी ग़ज़ल गंवारों जैसी.
तू जो नहीं तो मेरी साँसें ,
ढ़हते हुए किनारों जैसी.
अच्छा हुआ नहीं बन पायी ,
ग़ज़ल मेरी तलवारों जैसी
मेरी ग़ज़ल लुहारों जैसी .
तेरे घर पलती है ख़ुशबू,
तेरी बात बहारों जैसी.
मेरा ज़िक्र मरीजों जैसा,
तेरी बात अनारों जैसी.
तेरी बातें तो लगती हैं ,
आसमान के तारों जैसी.
तू हर ग़ज़ल के मतले जैसा,
मेरी ग़ज़ल गंवारों जैसी.
तू जो नहीं तो मेरी साँसें ,
ढ़हते हुए किनारों जैसी.
अच्छा हुआ नहीं बन पायी ,
ग़ज़ल मेरी तलवारों जैसी
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