Thursday, 17 March 2016

"आरक्षण" एक अभिशाप.....

देखो आरक्षण कैसे करे,प्रतिभा का भक्षण।
दे रहा है सिर्फ जातिगत भेद को संरक्षण।।
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ये मानसिक कुशाग्रता को धूल चटा रहा है।
विद्यार्थियों मे नफरत के बीज बो रहा है।।
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मंदबुद्धि उच्च पदों पर आसीन हो रहा है।
बुद्धिशील मे अवसाद बढ़ा रहा आरक्षण।।
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बच्चा पढ़ना-लिखना व्यर्थ समझ रहा है।
माँ से सिर्फ Sc,St. का अर्थ पुछ रहा है।।
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सिर्फ जात से होता,योग्यता का आंकलन।
देश को दीमक सा खोकला करे आरक्षण।।
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हर क्षेत्र की प्रगति मे वाधक बन रहा है।
अयोग्य हीअपने लक्ष्य साधक बन रहा है।।
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दुनियां के किसी देश मे नहीं ऐसा संरक्षण।
'राजनीति'मे फिर क्यूँ नहीं होता आरक्षण।।
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आमजन को कटपुतली सा नचा रहा है।
झुनझुना पकड़ा विकलांग बना दिया है।।
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योग्यता सीमित कर ये रोक रहा परिवर्तन।
'आरक्षित' को पंगु सम बना रहा आरक्षण।।
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हमे जातिगत भेद भुला,चाल समझना है।
नेताओ की कूटनीति मे नहीं उलझना है।।
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आपसी फुट डालकर नचा रहे नेतागण।
अर्थ-धर्म से मोहताज बना रहा आरक्षण।।
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ये आम-जन के गले की फाँस बन गया है।
..वरदान न होकर अभिशाप बन गया है।।
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अरमानों का बलिदान हो रहा प्रतिक्षण।
ज़हर सा धीमें-धीमें फैल रहा है आरक्षण।
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