जिसने चाहा नहीं कभी भी मांगूं चाँद सितारे।
रख दिए हथेली पर उसके ही क्यों तुमने अंगारे।
जिस सूरत को देखके सारा दिन रौशन होता था ,
छुपा लिया क्यों उसको तुमने फैलाये अंधियारे।
रख दिए हथेली पर उसके ही क्यों तुमने अंगारे।
जिस सूरत को देखके सारा दिन रौशन होता था ,
छुपा लिया क्यों उसको तुमने फैलाये अंधियारे।
तूफानों से जो टकराकर कल बाहर निकला था ,
डुबा दिया उसकी कश्ती को बनकर आज किनारे।
इक ना इक दिन मिल ही जाती मंजिल यूं राही को ,
लेकिन तुमने क्यों भटकाया देकर उसे सहारे।
माना मैंने सबकी अपनी अपनी ही किस्मत है पर ,
तुमने तो तकदीर बदल दी फिरता द्वारे द्वारे।
मुझे आज भी नहीं गिला शिकवा तुमसे कुछ होता ,
अगर फिरा ना लेते मुझसे नयन ज़रा कजरारे।
डुबा दिया उसकी कश्ती को बनकर आज किनारे।
इक ना इक दिन मिल ही जाती मंजिल यूं राही को ,
लेकिन तुमने क्यों भटकाया देकर उसे सहारे।
माना मैंने सबकी अपनी अपनी ही किस्मत है पर ,
तुमने तो तकदीर बदल दी फिरता द्वारे द्वारे।
मुझे आज भी नहीं गिला शिकवा तुमसे कुछ होता ,
अगर फिरा ना लेते मुझसे नयन ज़रा कजरारे।
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