Wednesday, 16 March 2016

जिसने चाहा नहीं कभी भी मांगूं चाँद सितारे

जिसने चाहा नहीं कभी भी मांगूं चाँद सितारे।
रख दिए हथेली पर उसके ही क्यों तुमने अंगारे।
जिस सूरत को देखके सारा दिन रौशन होता था ,
छुपा लिया क्यों उसको तुमने फैलाये अंधियारे।
तूफानों से जो टकराकर कल बाहर निकला था ,
डुबा दिया उसकी कश्ती को बनकर आज किनारे।
इक ना इक दिन मिल ही जाती मंजिल यूं राही को ,
लेकिन तुमने क्यों भटकाया देकर उसे सहारे।
माना मैंने सबकी अपनी अपनी ही किस्मत है पर ,
तुमने तो तकदीर बदल दी फिरता द्वारे द्वारे।
मुझे आज भी नहीं गिला शिकवा तुमसे कुछ होता ,
अगर फिरा ना लेते मुझसे नयन ज़रा कजरारे।

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