जब कोई अहसास महकता निकले है,
उस्रका मेरी रूह से रिश्ता निकले है.
मेरा दिल भी माँ के जैसा है शायद,
जब भी निकले दुआ का दरिया निकले है.
किस जादूई भीड़ ने घेर लिया मुझको,
जिसको देखूँ मेरा चेहरा निकले है.
ताला जड़ कर आता है हर ख्वाइश पर,
खुद से बाहर जब वो तनहा निकले है.
किसका नाम लिखाऊं मैं तहरीरों पर,
हमलावर तो मेरा अपना निकले है.
यही सोच कर मुझ तक प्यास को ले आ तू,
पत्थर के सीने से दरिया निकले है.
रोज़ निकलता हूँ घर से यूँ सपने ले,
बस्ता ले कर जैसे बच्चा निकले है.

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